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खाटूश्यामजी भगवान का परिचय महाभारत काल से

1 खाटूश्यामजी भगवान का परिचय महाभारत काल से

राजस्थान के सीकर जिले में प्रसिद्ध खाटू ग्राम है इसी गांव में खाटूश्यामजी भगवान का विश्व विख्यात मंदिर स्थित है
खाटू श्याम जी भगवान को श्री कृष्ण भगवान का ही अवतार माना जाता है

2 खाटू श्याम बाबा के मान्यताओं के पिछे पौराणिक कथा है

युद्ध काल के अन्तीम चरण में  जब कोरव और पांडवों के बीच में युद्ध चल रहा था  तब  पांडवों को कौरवों ने छल से हरा दिया गया और 12 वर्ष का वनवास मिला तब जंगल में एक हिडिंबा नामक राक्षसी से भीम ने विवाह किया और उसके एक पुत्र हुआ जिसका नाम घटोत्कच था जिसका वध कर्ण ने किया  , घटोत्कच का विवाह कामकटंककटा के साथ हुआ जिसके बर्बरीक नाम का पुत्र हुआ
 वह बहुत ही भव्य और वीर शक्तीशाली था साथ ही मां जगदम्बा कि तपस्या से अजय होने का वरदान प्राप्त था
जब महाभारत का युद्ध चल रहा था तब बर्बरीक युद्ध देखने का इच्छुक था और युद्ध देखने चल पड़ा और उसका एक नियम था कि जो युद्ध में हारेगा में उसे जीताउगा और वह युद्ध देखने चल पड़ा तब भगवान श्री कृष्ण ब्राह्मण का वेश धारण कर उसके सामने आ गये क्योंकि श्रीकृष्ण को पता था कि जीत तो पांडवों की है और बर्बरीक कौरवों की तरफ में लड़ेगा  ।

3 और बर्बरीक के तीन बाण तर्कश में लिये कृष्ण के सामने आ गये 

तब कृष्ण भगवान ने कहा बालक तीन बाण लेकर कहा जा रहें हों तब बर्बरीक ने कहा कि मैं महाभारत का युद्ध देखने जा रहा हूं और जो युद्ध में हारेगा में उसे जीताउगा
तब कृष्ण ने कहा तीन बाण से केसे युद्ध जीतेगा
तब बर्बरीक ने कहा तीन बाण से तो मैं पुरे ब्रमान्ड को हरा सकता हूं तब कृष्ण ने बर्बरीक की परिक्षा लेनें के लिए एक पीपल के वृक्ष के पत्ते को भेदने को कहा  तब कृष्ण ने छुपकर एक पत्ते को छिपा लिया तब बर्बरीक ने अपने तर्कश में से एक बाण लेकर पीपल के सारे पत्ते भेदकर कृष्ण को कहा है बा्मण अपने पैर को हटा लें नहीं तो पैर को भी भेद दुंगा और वह पैर के नीचे पत्ते को भेदकर वापस तर्कश में चला गया।
तब भगवान कृष्ण ने बर्बरीक को अपना शीश दान में देने के लिए कहा तब बर्बरीक ने मन में विचार किया की साधारण ब्राह्मण शीश का दान क्यों ले रहा है तब बर्बरीक ने ब्राह्मण से कहा हे ब्राह्मण आप अपने असली रूप में मुझे दर्शन दे तब भगवान कृष्ण ने अपने असली रूप में दर्शन दिए तब बर्बरीक ने कहा मेरा वचन था


4 श्री कृष्ण ने बर्बरीक को शीश दान मांगने का कारण समझाया

कि युद्ध आरम्भ होने से पूर्व युद्धभूमि पूजन के लिए तीनों लोकों में सर्वश्रेष्ठ क्षत्रिय के शीश की आहुति देनी होती है; इसलिए ऐसा करने के लिए वे विवश थे। इस दौरान बर्बरीक ने महाभारत युद्ध देखने कि इच्छा प्रकट की। श्री कृष्ण ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली। श्री कृष्ण इस बलिदान से प्रसन्न होकर बर्बरीक को युद्ध में सर्वश्रेष्ठ वीर की उपाधि से अलंकृत किया। श्री कृष्ण ने उस शीश को युद्ध अवलोकन के लिए, एक ऊंचे स्थान पर स्थापित कर दिया। फाल्गुन माह की द्वादशी को उन्होंने अपने शीश का दान दिया था इस प्रकार वे शीश के दानी कहलाये।

5 श्री कृष्ण ने प्रसन्न होकर वीर बर्बरीक के शीश को वरदान दिया

 कि कलयुग में तुम मेरे श्याम नाम से पूजित होगा और तुम्हारे स्मरण मात्र से ही भक्तों का कल्याण होगा और धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष कि प्राप्ति होगी। स्वप्न दर्शनोंपरांत बाबा श्याम, खाटू धाम में स्थित श्याम कुण्ड से प्रकट होकर अपने कृष्ण विराट सालिग्राम श्री श्याम रूप में सम्वत 1777 में निर्मित वर्तमान खाटू श्याम जी मंदिर में भक्तों कि मनोकामनाएं पूर्ण कर रहे हैं

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