1 रामदेव जी महाराज का जन्म
भादो शुक्ल पक्ष दूज के दिन वि.स. 1409 में
रूणिचा में हुआ
जन्म -1409 में भाद्रपद पक्ष धुएं के दिन
समाधी =वि.स. 1442
समाधी स्थल - रामदेवरा
रामदेव जी की पत्नी - नेतलदे
पिता - अजमल जी
माता - मैणादे
धर्म- हिंदू
रामदेव जी महाराज राजस्थान के लोक देवता है 15वी सताब्दी के आरंभ में पोकरण गांव व आस पास के गांव में भेरव नामक राक्षस व उसका भाई आदू राक्षस का अत्याचार बहुत अधिक बढ़ गया था तब अजमाल जी अत्याचार का सामना ना कर पाए अजमाल जी के कोई भी संतान सुख नहीं था
2 और इसी समय अजमाल जी अपना राज्य छोड़कर
भगवान विष्णु की भक्ति करने लगे और भक्ती से प्रसन्न होकर भगवान ने अजमाल जी को दर्शन दिए तब अजमाल ने भेरव नामक राक्षस के अत्याचारों के बारे में बताया और पुत्र प्राप्ती का वरदान मांगा
तब भगवान विष्णु ने उन्हें स्यम अजमाल जी के घर जन्म लेने का वचन दिया और कहा जब मैं अवतार लुंगा तब पानी का दुध और आंगन में कुमकुम के पैर दिखाई देंगे
ओर अजमाल जी खुशी से झूम उठे और महल में आगये और सारी बातें राणी मैणादे ने बताई ।
और ठिक उसी प्रकार रूणिचा में अजमल जीके महल में भाद्र शुक्ल पक्ष दूज के दिन वि.स. 1409 में भगवान विष्णु का अवतार हुआ और रामदेव नाम सु विख्यात हुए
और
3 महल में पानी का दुध और आंगन में कुमकुम के पैर दिखाई दिये
और मन्दिरों में शंख बजने लगे और माता मैणादे ने पर्चयो दिया और फिर बड़े होने पर दर्जी रो कपड़ा रो घौडो उडायो
और इसी प्रकार रामदेव जी समाज की सेवा व रक्षा की और
भेरव नामक राक्षस का वध किया और अत्याचारों से मुक्ति दिलाई और उच - निच का भेद भाव हटाया और दलितों की सेवा की और फिर राणी नेतलदे से विवाह किया और बाद में रामदेव जी महाराज ने अनेकों चमत्कार किऐ
पांच पीरो को पर्चो
4 भगवान श्री रामदेव जी
घर घर जाते और लोगों को उपदेश देते कि उँच-नीच जात-पात कुछ नहीं है | हर जाति को बराबर अधिकार है । पीरों ने श्री रामदेव जी को परखने का विचार किया कि अपने से बड़े पीर जो मक्का में रहते हैं उनको खबर दी कि हिन्दुओं में एक महान पीर पैदा हुए हैं जो मरे हुए प्राणी को जिन्दा कर देते हैं,
अन्धे को आँखे देते हैं अतिथियों की सेवा करना ही अपना धर्म समझते हैं उनकी परीक्षा ली जाए। यह खबर जब मक्का पहुँची तो पाँच पीर मक्का से रवाना हुए। कुछ दिनों में वे पीर रूणिचा की ओर पहुँचे। पांचों पीरों ने भगवान रामदेव जी से पूछा कि हे भाई रूणिचा यहां से कितनी दूर है,
तब भगवान रामदेवजी ने कहा कि यह जो गांव सामने दिखाई दे रहा है वही रूणिचा है, क्या मैं आपके रूणिचा आने का कारण पूछ सकता हूँ | तब उन पाँचों में से एक पीर बोले हमें यहां रामदेव जी से मिलना है। तब प्रभु बोले हे पीरजी मैं ही रामदेव हूँ आपके समाने खड़ा हूँ कहिये मेरे योग्य क्या सेवा है।
5 श्री रामदेव जी के वचन सुनकर पाँचों पीर प्रभु के साथ हो लिए।
रामदेवजी ने पाँचों पीरों का बहुत सेवा सत्कार किया। प्रभू पांचों पीरों को लेकर महल पधारे, वहां पर गद्दी, तकिया और जाजम बिछाई गई और पीरजी गद्दी तकियों पर विराजे मगर श्री रामदेव जी जाजम पर बैठ गए और बोले हे पीरजी आप हमारे मेहमान हैं, हमारे घर पधारे हैं आप हमारे यहां भोजन करके ही पधारना। इतना सुनकर पीरों ने कहा कि हे रामदेव भोजन करने वाले कटोरे हम मक्का में ही भूलकर आ गए हैं। हम उसी कटोरे में ही भोजन करते हैं दूसरा बर्तन वर्जित है। आपको भोजन कराना है तो वो ही कटोरा जो हम मक्का में भूलकर आये हैं मंगवा दीजिये तो हम भोजन कर सकते हैं वरना हम भोजन नहीं करेंगे। तब रामदेव जी ने कहा कि हे पीर जी अगर ऐसा है तो मैं आपके कटोरे मंगा देता हूँ।
6 ऐसा कहकर भगवान रामदेव जी ने अपना हाथ लम्बा किया और एक ही पल में पाँचों कटोरे पीरों के सामने रख दिये
और कहा पीर जी अब आप इस कटोरे को पहचान लो और भोजन करो। जब पीरों ने पाँचों कटोरे मक्का वाले देखे तो पाँचों पीरों को श्री रामदेव जी महानता पर विश्वास किया और उनके विचारों और आचरण से बहुत प्रभावित हुए और कहने लगे हम पीर हैं मगर आप महान पीर हैं। आज से आपको दुनिया रामसापीर के नाम से जानेगी। इस प्रकार से पीरों ने भोजन किया और श्री रामदेवजी को पीर की पदवी मिली और रामसापीर कहलाए।
और विकास.स.१४४२,-1442 में रामदेवरा में जीवत समाधी ली।
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